उत्तराखंड
उत्तराखंड फॉरेस्ट लैंड पर CJI सूर्यकांत नाराज, निर्माण कार्य बैन और खाली जमीन जब्त
सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड राज्य की वन भूमि पर अवैध कब्जा मामले पर सख्त रुख अपनाया है। इस कड़ी चीफ जस्टिस सूर्यकांत ने राज्य सरकार की निष्क्रियता पर स्वतः संज्ञान लेते हुए जांच समिति गठित कर विस्तृत रिपोर्ट मांगी है तो वहीं, निर्माण कार्य पर भी रोक रहेगी। चीज जस्टिस सूर्यकांत ने इस पर नाराजगी जताते हुए कहा कि हमारे लिए यह बेहद चौंकाने वाला है कि उत्तराखंड सरकार और उसके अधिकारी अपनी आंखों के सामने वन भूमि पर हो रहे अतिक्रमण को मूक दर्शक की तरह देख रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर सख्ताई करते हुए कहा कि किसी भी निजी व्यक्ति या पक्ष को उस जमीन पर कोई तीसरा पक्ष बनाने की अनुमति नहीं होगी। अर्थात न तो वहां बसने वाले लोग वह जमीन किसी को बेच सकते हैं और न ही किराए पर दे सकते हैं। जिन जमीनों पर अभी मकान नहीं बने हैं और वे खाली पड़ी हैं, उन्हें वन विभाग तुरंत अपने कब्जे में लेगा।
उत्तराखंड वन विभाग सक्रिय, अवैध कब्जे वाली फाइलें खंगालीं
यह पूरा मामला 2866 एकड़ फॉरेस्ट लैंड से जुड़ा हुआ बताया जा रहा हैं, दरअसल, राज्य ने इसे फॉरेस्ट लैंड घोषित किया था। लेकिन आरोप है कि इस सरकारी जमीन का एक हिस्सा ऋषिकेश की एक संस्था, ‘पशु लोक सेवा समिति’ को लीज पर दिया गया। जिसके बाद यह संस्था बंद हो गई, साल 1994 में एक सरेंडर डीड यानी एक लिखित समझौते के जरिए 594 एकड़ जमीन वापस वन विभाग को सौंप दी गई। इसके बाद जमीन वापसी के इस फैसले को फाइनल मान लिया गया और लंबे समय तक इसे किसी ने भी कानूनी तौर पर चुनौती नहीं दी। इसके बाद साल 2001 में कुछ लोगों ने अचानक सामने आकर यह दावा किया कि इस सरकारी जमीन पर उनका कब्जा है।
कुल मिलाकर बात यह है कि जब संस्था बंद हुई तो जमीन राज्य सरकार को वापस लौटा दी गई, अब कायदे से मामला वहीं खत्म हो जाना चाहिए था। मगर कई साल बीतने के बाद कुछ लोगों ने अवैध रूप से उस जमीन पर अपना हक जताना शुरू कर दिया, वहीं अब सुप्रीम कोर्ट का निर्देश आने के बाद वन विभाग और उत्तराखंड शासन भी एक्टिव हुआ है और इस मामले के साथ ही तमाम वन भूमि पर कब्ज़े की फ़ाइलो को खंगाला जा रहा हैं।





