उत्तराखंड
“साहब, पता नहीं कब बुलडोजर आकर घर गिरा दे”…पूछड़ी गांव के निवासीयों को बेघर होने का डर !
“साहब, पता नहीं कब बुलडोजर आकर घर गिरा दे”…यह वो भयानक और डरावना कथन है जो इस समय कोसी नदी किनारे बसने वाले निवासीयों की जुबान पर है। दरअसल, रामनगर के पूछड़ी क्षेत्र में कोसी नदी किनारे वन भूमि पर अतिक्रमण कर झोंपड़ियां व मकान बनाकर रह रहे लोगों को जल्द ही अपने आशियाने हटाने होंगे, अगर वे जल्द स्वयं वन क्षेत्र की भूमि खाली नहीं करते तो पंजे से कार्रवाई की जाएगी। इस फरमान को लेकर कोसी नदी के आस-पास वन भूमि पर रहने वाले स्थानिय लोगों के चेहरे पर गुस्सा और आंखों में मायूसी है,तकरीबन 20 सालों से भी अधिक समय से यहां रहने वाले स्थानिय अब इस बात को लेकर परेशान हैं कि उन्हें जल्द ही अपनी जमीन छोड़नी होगी। स्थानिय निवासियों का राज्य सरकार से सबसे बड़ा सवाल यही है कि जिन लोगों ने चंद पैसों की खातिर उन्हें स्टाम्प पर यह वन भूमि बेची है, आखिर धामी सरकार उन्हें कब और कौन सा सबक सिखाएगी ?
बच्चों-बुजुर्गों की सता रही बेघरी की चिंता
पूछड़ी के लोगों में ग़म की लहर है, यहां के 170 परिवारों को अपना आशियाना उजड़ने का डर सता रहा है। यहां के प्रभावित लोगों को अब बच्चों की पढ़ाई और बुजुर्गों की चिंता सता रही है, एक ओर बच्चों की छूटती पढ़ाई और तो वहीं डावांडोल करती मानसिक स्थिति। खौफ़ की जद में आए प्रभावितों का कहना है कि “बच्चे रात में डरकर उठ जाते हैं और कहते हैं कि हमारा घर गिर जाएगा, जिस घर को हमने अपने हाथों से बनाया है। अब आप ही बताइए साहब क्या ये जीवन है?”
उजाड़ने से पहले बसाने की व्यवस्था करे प्रशासन
पूछड़ी के लोगों का कहना है कि प्रशासन हमारे आशियाने उजाड़ने से पहले हमें कहीं और बसाने की व्यवस्था करे। यूं चंद दिनों की मोहलत देने का कोई औचित्य नहीं है, इतने कम दिनों में हम नया ठिकाना कैसै ढूंढ पाएंगे। इस गंभीर विषय पर प्रशासन को मानवीय दृष्टिकोण अपना कर चिंतन करना चाहिए। पूछड़ी के ग्रामीणों की यह प्रबल मांग है कि पहले उनके पुनर्वास की व्यवस्था की जाए, फिर उन्हें यहां से विस्थापित किया जाए, क्योंकि पूर्व में प्रशासन भी कुछ ऐसी ही बात कर चुका है।





