देहरादून
देहरादून में स्वास्थ्य सेवाएं क्या सही मायनों में हों रही है खराब…? या महज सुर्खियां बटोरने की मची है होड़….
देहरादून, 31 जुलाई।
राज्य की राजधानी देहरादून में इन दिनों स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर अचानक से सवाल उठने लगे हैं। यूं तो पूरे उत्तराखंड में स्वास्थ्य सेवाएं सुव्यवस्थित रूप से संचालित हो रही हैं और सरकार लगातार इन्हें बेहतर बनाने के प्रयास कर रही है, लेकिन देहरादून के कुछ गिने-चुने अस्पतालों को जिस प्रकार से निशाना बनाया जा रहा है, उससे एक बड़ा सवाल खड़ा हो गया है — क्या यह एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है?
सूत्रों की मानें तो बीते कुछ हफ्तों से कुछ चुनिंदा अस्पतालों को लेकर लगातार शिकायतें, आरोप और मीडिया रिपोर्ट्स सामने आ रही हैं। इन मामलों को जिस तरह से तूल दिया जा रहा है, उससे ऐसा प्रतीत होता है कि योजनाबद्ध ढंग से स्वास्थ्य व्यवस्था की छवि को धूमिल करने की कोशिश की जा रही है। हैरानी की बात यह है कि ये सारे मामले राजधानी के भीतर ही उछाले जा रहे हैं, जबकि पहाड़ी और दूरस्थ क्षेत्रों में भी कई स्थानों पर सुविधाएं सीमित हैं, लेकिन वहां ऐसी आलोचनात्मक दृष्टि नहीं दिख रही।
राज्य सरकार की ओर से स्वास्थ्य सेवाओं को सशक्त बनाने के लिए न केवल बड़े बजट आवंटित किए गए हैं, बल्कि मुख्यमंत्री स्वयं समय-समय पर अधिकारियों को निर्देशित करते रहे हैं कि किसी भी हाल में आमजन को स्वास्थ्य सेवाओं से वंचित न रहना पड़े। विभागीय अधिकारियों को भी व्यवस्थाओं को नियमित मॉनिटर करने को कहा गया है, और कई जिलों में तो साप्ताहिक निरीक्षण भी जारी है। इसके बावजूद जिस प्रकार से देहरादून के अस्पतालों को टारगेट किया जा रहा है, उससे कई तरह की आशंकाएं जन्म ले रही हैं।
विश्वसनीय सूत्रों का कहना है कि कुछ असंतुष्ट अधिकारी इसमें भूमिका निभा रहे हैं, जो वर्तमान में स्वास्थ्य विभाग के कामकाज से असहज हैं। उनकी ओर से ऐसी सूचनाएं या फीडबैक प्रेषित की जा रही हैं, जिनका उद्देश्य व्यवस्था सुधार नहीं बल्कि बदनाम करना लगता है।
स्वास्थ्य विभाग भी “स्वस्थ आलोचना का स्वागत करता रहा है, लेकिन जब एकतरफा और उद्देश्यहीन आलोचना शुरू हो जाए तो वहां नीयत पर सवाल खड़े होते हैं। विभाग हर शिकायत की जांच कर रहे हैं लेकिन जिन मुद्दों को बिना ठोस प्रमाण के उछाला जा रहा है, उन्हें हम साजिश से कम नहीं मानते।”
वहीं आम जनता का भी एक वर्ग इन आरोपों को राजनीति से प्रेरित बता रहा है। कई स्थानीय नागरिकों ने बताया कि उन्हें अस्पतालों में बेहतर सेवाएं मिल रही हैं और स्टाफ भी सहयोग कर रहा है। कुछ समस्याएं जरूर हैं, लेकिन उन्हें मीडिया या सोशल मीडिया के माध्यम से सनसनीखेज तरीके से पेश करना, समस्या का समाधान नहीं है।
इस पूरे घटनाक्रम ने देहरादून में एक नई बहस को जन्म दे दिया है। क्या यह वास्तव में व्यवस्थाओं को सुधारने की दिशा में उठाया गया कदम है या फिर स्वास्थ्य तंत्र को बदनाम करने की एक सोची-समझी चाल? इसका जवाब तो समय ही देगा, लेकिन फिलहाल जरूरत इस बात की है कि आलोचना के साथ-साथ समाधान पर भी फोकस हो, ताकि राज्य की स्वास्थ्य व्यवस्था और अधिक सुदृढ़ बन सके।

