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उत्तराखंड

उत्तराखंड में निकाय चुनाव के आयोजन पर संशय, तमाम कार्यक्रमों और अधूरी तैयारी के बीच क्या हो पाएगा समय से निकाय चुनाव…,?

उत्तराखंड में निकाय चुनाव को लेकर स्थिति अब तक स्पष्ट नहीं हो पाई है। हालांकि चुनाव आयोग द्वारा आरक्षण सूची जारी करने के बाद आपत्तियाँ मंगाई जा रही हैं, लेकिन चुनावी प्रक्रिया की अन्य महत्वपूर्ण तैयारियों में अब भी देरी देखने को मिल रही है। विभाग की तरफ से चुनाव ड्यूटी के लिए कर्मचारियों और अधिकारियों की सूची तक विभागों से नहीं बन पाई है। ऐसे में चुनाव को तय समय पर कराने की संभावना अब धूमिल होती जा रही है।

सूत्रों के अनुसार, प्रदेश में निकाय चुनाव के आयोजन को लेकर अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं। निर्वाचन प्रक्रिया के आरंभ होने से पहले कर्मचारियों और अधिकारियों को ड्यूटी पर काफी महत्वपूर्ण होती है, लेकिन अभी तक इस दिशा में कोई प्रगति नहीं दिखाई दी है। इस वजह से चुनाव की तारीख को लेकर संशय बना हुआ है।

वहीं, सूत्रों की मानें तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 17 जनवरी को देहरादून दिल्ली एक्सप्रेसवे का उद्घाटन कर सकते हैं। यदि ऐसा होता है, तो प्रधानमंत्री का यह कार्यक्रम निश्चित तौर पर राज्य में चुनावी माहौल को प्रभावित करेगा, ऐसे में यह संभावना जताई जा रही है कि निकाय चुनाव फिलहाल टल सकता है।

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सरकार और निर्वाचन आयोग के बीच इस समय जो स्थिति बन रही है, उससे यह सवाल खड़ा हो रहा है कि क्या इन तमाम व्यवस्थाओं और कार्यक्रमों के बावजूद निकाय चुनाव समय पर आयोजित किए जा सकेंगे। चुनाव के लिए जरूरी तैयारियों में देरी और प्रधानमंत्री के कार्यक्रम के बीच निकाय चुनाव को लेकर स्थिति बहुत स्पष्ट नहीं है।

राजनीतिक और प्रशासनिक हलकों में यह चर्चा जोरों पर है कि चुनाव में देरी क्यों हो रही है। राज्य में निकाय चुनाव की घोषणा होने के बाद इसे तात्कालिक तौर पर आयोजित किया जाना था, लेकिन प्रशासनिक स्तर पर ढिलाई के कारण चुनाव की तारीखें तय नहीं हो पाई हैं। इसके साथ ही, चुनावी आरक्षण को लेकर भी विवाद जारी है, जिससे प्रक्रिया में और अधिक विलंब हो सकता है।

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इस बीच, चुनाव को लेकर विपक्षी दलों ने राज्य सरकार पर आरोप लगाए हैं कि वह जानबूझकर चुनाव को टालने का प्रयास कर रही है। उनका कहना है कि बीजेपी चुनावों में देरी कर अपनी राजनीतिक स्थिति को मजबूत करना चाहती है, ताकि चुनावी माहौल में किसी तरह की अनिश्चितता बनी रहे।

इसके अलावा, चुनाव के लिए जरूरी बुनियादी ढांचा, जैसे मतदान केंद्रों की व्यवस्था, चुनाव सामग्री की आपूर्ति, सुरक्षा इंतजाम और अन्य प्रशासनिक तैयारियां अभी भी अधूरी हैं।

इस स्थिति में चुनाव आयोग और सरकार के समक्ष अब यह बड़ा सवाल खड़ा हो गया है कि क्या वे निर्धारित समय पर चुनाव करवा पाएंगे, या फिर चुनावों को टालने की स्थिति बन जाएगी।

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