उत्तराखंड
महिला पुलिस अधिकारियों के साथ खुली चर्चा का आयोजन, डीजीपी ने सीधे संवाद कर बढ़ाया उत्साह….
राज्य स्थापना की रजत जयंती वर्ष के अवसर पर उत्तराखंड पुलिस द्वारा एक ऐतिहासिक पहल करते हुए आज पुलिस महानिदेशक श्री दीपम सेठ की अध्यक्षता में महिला पुलिस अधिकारियों के साथ ओपन हाउस संवाद सत्र आयोजित किया गया। देहरादून स्थित सरदार पटेल भवन के सभागार में आयोजित इस सत्र में सब-इंस्पेक्टर से लेकर आईजी स्तर तक की महिला अधिकारियों ने भाग लिया।
इस प्रकार की खुली चर्चा राज्य पुलिस के इतिहास में पहली बार हुई, जिसमें महिला पुलिसकर्मियों को अपने अनुभव, समस्याएं और सुझाव सीधे पुलिस महानिदेशक के समक्ष रखने का अवसर प्राप्त हुआ। डीजीपी श्री सेठ ने अधिकारियों के साथ गहन संवाद करते हुए उनकी पेशेवर चुनौतियों, व्यवहारिक कठिनाइयों और सुझावों को गंभीरता से सुना और उन्हें समाधान का आश्वासन दिया।
इस संवाद सत्र में हाल ही में चेन्नई में आयोजित 11वें राष्ट्रीय महिला पुलिस सम्मेलन में भाग लेकर लौटी उत्तराखंड पुलिस की छह सदस्यीय टीम ने भी अपने अनुभव साझा किए। उन्होंने कार्यस्थल पर कार्य-संस्कृति, मानसिक स्वास्थ्य, तनाव प्रबंधन और करियर विकास जैसे विषयों पर प्रकाश डाला।
पुलिस महानिदेशक ने इस अवसर पर कई महत्वपूर्ण निर्देश भी जारी किए, जिनमें महिला पुलिसकर्मियों को विशेष प्रशिक्षण देकर उन्हें जिम्मेदार पदों पर नियुक्त करना, साइबर सेल, एसटीएफ, नारकोटिक्स जैसे संवेदनशील विभागों में उनकी भागीदारी बढ़ाना, कार्यस्थल पर लचीली नीति अपनाना, फिटनेस व योगाभ्यास को प्रोत्साहित करना, और आंतरिक शिकायत समिति को सक्रिय करना शामिल है।
महिला अधिकारियों ने भी मंच पर अपने विचार खुलकर साझा किए और ऐसे आयोजनों को महिला सशक्तिकरण की दिशा में एक अहम कदम बताया। डीजीपी सेठ ने कहा कि महिला अधिकारियों का कार्य और आचरण ऐसा होना चाहिए जिससे समाज गर्व करे। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि इस परिचर्चा से प्राप्त अनुभवों को राज्य की पुलिस व्यवस्था में शामिल कर उनकी भूमिका को और अधिक सशक्त बनाया जाएगा।
इस अवसर पर अपर पुलिस महानिदेशक वी. मुरुगेशन, ए. पी. अंशुमान, पुलिस महानिरीक्षक विम्मी सचदेवा रमन, विमला गुंज्याल, नीरू गर्ग सहित तमाम वरिष्ठ महिला अधिकारी और पुलिस मुख्यालय की महिला कार्मिक उपस्थित रहीं।
यह संवाद सत्र न केवल महिला अधिकारियों को प्रेरणा देने वाला रहा, बल्कि उत्तराखंड पुलिस के भीतर एक समावेशी, संवेदनशील और सशक्त कार्य संस्कृति की दिशा में मील का पत्थर सिद्ध हुआ।

