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उत्तराखंड

स्वास्थ्य मंत्री की घोषणा के बाद भी बढ़ा रामनगर अस्पताल का अनुबंध, पीपीपी मोड पर सवाल उठे

देहरादून, उत्तराखंड में एक बार फिर से सरकार की नीतियों और घोषणाओं के बीच विरोधाभास देखने को मिला है। प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री द्वारा रामनगर के सरकारी अस्पताल के पीपीपी (पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप) मोड पर हुए अनुबंध को समाप्त करने की घोषणा के बाद भी अस्पताल का अनुबंध बढ़ा दिया गया है। इस स्थिति ने स्वास्थ्य मंत्रालय की कार्यशैली पर सवाल उठ रहे हैं और यह दर्शाता है कि सरकार अपने निर्णयों पर स्थिर नहीं रह पा रही है।

इस घटनाक्रम की शुरुआत तब हुई जब अल्मोड़ा बस हादसे के बाद अस्पताल में इलाज में लापरवाही के आरोप लगे थे। इस मामले में स्वास्थ्य मंत्री धन सिंह रावत ने प्रतिक्रिया दी थी और पीपीपी मोड पर चल रहे रामनगर अस्पताल का अनुबंध समाप्त करने का निर्देश दिया था। उनका यह बयान हादसे के बाद आया था, जब यह आरोप लगे थे कि अस्पताल की व्यवस्थाएं मरीजों के इलाज के लिए उचित नहीं हैं और वहां की सेवाएं पूरी तरह से असंतोषजनक थीं।

स्वास्थ्य मंत्री ने एक बैठक में कहा था कि 31 दिसंबर 2024 को अस्पताल का अनुबंध समाप्त हो जाएगा और इसे फिर से नवीनीकरण नहीं किया जाएगा। उनके इस बयान से यह संकेत मिला कि सरकार अब पीपीपी मोड के तहत चल रहे अस्पतालों के संचालकों से नाराज है और इस व्यवस्था को समाप्त करने की दिशा में कदम उठा सकती है।

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लेकिन इसके बावजूद, 31 दिसंबर को अनुबंध की समाप्ति के बाद जब स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से इस पर कोई स्पष्ट कदम नहीं उठाया गया, तो अस्पताल का अनुबंध न केवल बढ़ा दिया गया, बल्कि यह भी तय किया गया कि अस्पताल की सेवाएं आगे तक जारी रहेंगी। यह स्थिति सरकार के उस कथन से बिल्कुल उलट थी, जिसमें उन्होंने अनुबंध समाप्त करने की बात कही थी।

इस घटनाक्रम ने कई सवालों को जन्म दिया है। सबसे पहला सवाल यह है कि सरकार की नीतियां कितनी स्थिर और प्रभावी हैं। क्या सरकार का निर्णय केवल मीडिया और जनता के सामने अपनी छवि सुधारने के लिए लिया जाता है, या फिर सचमुच की योजनाओं को लागू करने में कोई गंभीरता है? यह स्थिति प्रदेश के स्वास्थ्य तंत्र में व्याप्त अव्यवस्थाओं और राजनीतिक दबावों का भी परिचायक है।

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इसके अलावा, यह भी सवाल उठता है कि अगर सरकार वास्तव में अस्पतालों के संचालन में सुधार चाहती थी, तो क्यों उसने पीपीपी मोड पर चल रहे अस्पतालों से अनुबंध समाप्त करने का फैसला लिया था? क्या यह सिर्फ अल्मोड़ा हादसे की प्रतिक्रिया थी, या इसके पीछे कुछ और कारण थे? और सबसे अहम यह कि क्या सरकार अपनी योजनाओं को लागू करने में पूरी तरह से सक्षम है, या फिर यह केवल राजनीतिक बयानबाजी है?

हालांकि, स्वास्थ्य मंत्रालय ने अब तक अस्पताल के अनुबंध को बढ़ाने को लेकर कोई बयान जारी नहीं किया है। लेकिन पूरी स्थिति यह भी दर्शाती है कि सरकार के भीतर अंदरूनी मतभेद और असमर्थता की समस्या बनी हुई है। स्वास्थ्य मंत्री की तरफ से पीपीपी मोड पर चल रहे अस्पतालों के खिलाफ बयान और फिर अनुबंध के बढ़ने से साफ तौर पर यह महसूस हो रहा है कि सरकार स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार के प्रति कितनी गंभीर है, यह एक बड़ा सवाल बन गया है।

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