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देहरादून

दून अस्पताल में इलाज की व्यवस्था पर सवाल: मरीजों की जान जोखिम में…

दून अस्पताल, जो राज्य का सबसे बड़ा सरकारी अस्पताल है, चिकित्सा सेवाओं में सुधार के लिए एक मेडिकल कॉलेज बनने के बाद भी गंभीर समस्याओं का सामना कर रहा है। अस्पताल में बढ़ती अव्यवस्था और इलाज के नाम पर मरीजों के साथ हो रही लापरवाही ने इस प्रतिष्ठित संस्थान की प्रतिष्ठा पर सवाल खड़े कर दिए हैं। हाल ही में हुई एक घटना ने दून अस्पताल की व्यवस्था को लेकर चिंता और असंतोष को और बढ़ा दिया है।

कल, 50 वर्षीय विजेंद्र नामक एक मरीज को हृदय संबंधी समस्याओं के कारण दून अस्पताल लाया गया। अस्पताल में भर्ती करने से पहले डॉक्टरों ने उसे एंबुलेंस से भी उतरने नहीं दिया, जिससे उसकी हालत और बिगड़ गई। इस घटना से यह स्पष्ट होता है कि दून अस्पताल में इलाज की व्यवस्था कितनी अव्यवस्थित और असंवेदनशील हो चुकी है। यह घटना उस अस्पताल में हुई है, जिसे राज्य के सबसे बड़े सरकारी अस्पतालों में गिना जाता है, और जिसे अक्सर चंडीगढ़ के पीजीआई और दिल्ली के एम्स जैसे प्रमुख चिकित्सा संस्थानों के साथ तुलना की जाती है।

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इस घटना के बाद अस्पताल प्रशासन द्वारा कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है। अस्पताल के एमएस (Medical Superintendent) ने इस घटना को “दुर्भाग्यपूर्ण” बताते हुए निर्देश जारी किए हैं, लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या केवल निर्देश जारी करने से हालात सुधर सकते हैं? क्या यह व्यवस्था मरीजों के लिए सुरक्षित है?

मेडिकल कॉलेज बनने के बाद उम्मीद जताई गई थी कि दून अस्पताल की चिकित्सा सेवाओं में सुधार होगा, लेकिन असलियत इसके बिल्कुल विपरीत नजर आ रही है। मरीजों को इलाज के नाम पर नए डॉक्टरों से एक्सपेरिमेंट कराए जा रहे हैं, जिससे मरीजों की स्थिति और बिगड़ रही है। यह भी देखा गया है कि कई मामलों में अनुभवी डॉक्टरों की कमी महसूस हो रही है। इसके परिणामस्वरूप, अस्पताल में इलाज कराने आए लोग जान जोखिम में डालने के लिए मजबूर हो रहे हैं।

दून अस्पताल में इलाज करवाने वाले अधिकांश मरीज आर्थिक रूप से कमजोर होते हैं, जिनके पास प्राइवेट अस्पतालों में इलाज करवाने की सामर्थ्य नहीं होती। ऐसे में, सरकारी अस्पतालों पर उनकी सबसे बड़ी उम्मीद टिकी होती है। लेकिन दून अस्पताल की हालत यह दर्शाती है कि यहां इलाज करने के बजाय मरीजों के साथ एक्सपेरिमेंट किए जा रहे हैं।

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अस्पताल में व्यावसायिकता और संवेदनशीलता की भारी कमी है। यह बात समझनी चाहिए कि मरीजों की जान और उनकी सुरक्षा सबसे पहले होनी चाहिए, लेकिन दून अस्पताल में इन बुनियादी प्राथमिकताओं की अनदेखी हो रही है। अगर यह व्यवस्था इसी तरह चलती रही तो न केवल मरीजों की जान खतरे में पड़ेगी, बल्कि अस्पताल की विश्वसनीयता भी धूमिल हो जाएगी।

अब यह जरूरी हो गया है कि राज्य सरकार और अस्पताल प्रशासन इस गंभीर समस्या पर तत्काल ध्यान दें और दून अस्पताल में चिकित्सा सेवाओं को सुधारने के लिए ठोस कदम उठाए। अगर अस्पताल को सही दिशा में चलाने के लिए जिम्मेदार अधिकारियों और डॉक्टरों के प्रति सख्त कार्रवाई नहीं की जाती है, तो दून अस्पताल का भविष्य और मरीजों की सुरक्षा दोनों ही गंभीर संकट में पड़ सकते हैं।

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