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उत्तराखंड

जब सीएम धामी उतरे खेतों में, तो कुछ नेताओं को क्यों हुई बेचैनी ? खेतों की मिट्टी से निकले मुख्यमंत्री की सादगी बनी सोशल मीडिया की सुर्खी…

देहरादून, 5 जुलाई।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का अपने पैतृक गांव नगला तराई में धान की रोपाई करते हुए खेत में उतरना न सिर्फ एक प्रेरणादायक दृश्य था, बल्कि सोशल मीडिया पर यह एक भावनात्मक लहर की तरह छा गया। आम जनता ने जहां इसे एक “धरती से जुड़े नेता” की सच्ची तस्वीर बताया, वहीं कुछ विपक्षी नेताओं को यह दृश्य रास नहीं आया।

पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने तंज कसते हुए कहा कि सीएम धामी राहुल गांधी का अनुसरण कर रहे हैं। इस टिप्पणी ने एक नई बहस को जन्म दे दिया — क्या अब खेतों में उतरना भी किसी दल का कॉपीराइट हो गया है? क्या मिट्टी से जुड़ाव दिखाना भी ‘राजनीतिक इवेंट’ माना जाएगा?

वास्तविकता यह है कि सीएम धामी अपने पुश्तैनी खेत में पहुंचे, बैलों से पाटा खिंचवाया, मिट्टी समतल की और खुद घुटनों तक पानी में उतरकर धान की रोपाई की। वहां कोई मंच नहीं था, कोई प्रचार टीम नहीं, सिर्फ किसान और उनकी मिट्टी से जुड़ाव था। न मीडिया को बुलाया गया, न कोई पूर्व नियोजित इवेंट था। यह नाटकीयता नहीं, बल्कि आत्मीयता थी।

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इसके उलट, जब राहुल गांधी धान की बुवाई या हल चलाते नजर आते हैं, तो वह एक योजनाबद्ध राजनीतिक इवेंट की तरह होता है — कैमरों की भरमार, सोशल मीडिया टीम की मौजूदगी और पूरी सेटिंग। वहीं हरीश रावत अक्सर पर्वतीय खेती की बात करते हुए फोटो सेशन में व्यस्त नजर आते हैं, लेकिन असली खेत की मिट्टी शायद उनके पैरों से दूर ही रही है।

मुख्यमंत्री धामी का यह कदम केवल एक प्रतीकात्मक क्रिया नहीं, बल्कि उनकी जमीन से जुड़े व्यक्तित्व का प्रमाण है। वे ऐसे परिवार से आते हैं जहां खेती-बाड़ी जीवन का हिस्सा रही है। उनके पिता एक सैनिक के साथ-साथ किसान भी थे, और वे खुद भी बचपन से खेतों में हाथ बंटाते रहे हैं।

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धामी के लिए खेती एक जिम्मेदारी है, प्रचार का साधन नहीं। यही कारण है कि उनके खेत में उतरने पर किसानों को अपना साथी नजर आता है, न कि कोई कैमरे के लिए पोज़ देता नेता।

इस घटनाक्रम ने यह साफ कर दिया कि राजनीति में दिखावे और धरातल के जुड़ाव में फर्क होता है — और मुख्यमंत्री धामी उस मिट्टी के नेता हैं, जो केवल भाषण नहीं देते, बल्कि जमीन पर उतरकर काम करते हैं।

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